इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को एक बार फिर ढेरों बधाइयां और प्रथम सौर मिशन की अंतिम सफलता की शुभकामनाएं३। ‘चंद्रयान-3’ की अनुपम सफलता के बाद इसरो ने ‘आदित्य एल-1’ मिशन का प्रक्षेपण किया है। फिलहाल यान पृथ्वी की कक्षा में घूम रहा है। इस मिशन के बाद अक्तूबर में ‘गगनयान’ का सफरनामा शुरू किया जाएगा। शुक्र पर जाने का भी लक्ष्य तय है। सूर्य के अध्ययन के लिए सैटेलाइट भेजने वाला भारत दुनिया का तीसरा देश है। अमरीका के नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के बाद मिशन इसरो ने भेजा है। कभी इस दिन, इन लम्हों और ऐसी उपलब्धियों की कल्पना भी की थी? सूर्य तो हम भारतीयों के लिए भगवान स्वरूपा देव हैं। हम सूर्य की उपासना करते हैं और मंत्रोच्चारण के साथ आस्था व्यक्त करते हैं। हमने ऐसी मिथकीय कहानियां भी पढ़ी हैं कि बाल हनुमान ने सूर्य को गोल-गोल फल समझ कर अपने मुंह में हड़प लिया था। यकीनन सृष्टि गहरे अंधकार में डूब गई होगी और हाहाकार मचने लगा होगा! उन आस्थाओं और कथाओं का आज भी सम्मान है, लिहाजा किसी भी अंतरिक्ष मिशन के प्रक्षेपण से पहले इसरो अध्यक्ष एवं अन्य वैज्ञानिक अपनी आस्था जताने मंदिरों तक जाते हैं। कल्पना यह भी करनी चाहिए कि मानवता और प्रौद्योगिकी ने कितनी ऊंची छलांग लगाई है कि सूर्य तक अंतरिक्ष यान भेजना और उसका सूक्ष्म अध्ययन करना तक संभव हो गया है। कोई भी मिशन सूर्य की सतह तक नहीं पहुंच सकता, क्योंकि सूर्य का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस बताया जाता है। सूर्य के गुरुत्वाकर्षण की परिधि में आने वाली कोई भी वस्तु भस्म हो जाएगी, लिहाजा हमारे वैज्ञानिकों ने लैगरेंज प्वाइंट-1 को चुना है। ऐसे 5 प्वाइंट हैं, लेकिन एल-1 ऐसी जगह है, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल स्थिर होता है।
यानी ‘आदित्य मिशन’ एल-1 पर स्थिर रहकर अपनी जांच और सचित्र अध्ययन को अंजाम दे सकता है। यान पर 7 पेलोड हैं, जो तमाम सूचनाएं, संकेत और चित्र धरती पर इसरो तक पहुंचा सकते हैं। पृथ्वी से सूर्य की कुल दूरी करीब 1.5 करोड़ किलोमीटर है। इसरो का मिशन फिलहाल 1.5 लाख किलोमीटर का सफर तय करेगा। इसमें भी 125-127 दिन का वक्त लगेगा। अर्थात प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणितीय गणना के बल पर ‘आदित्य’ चार माह से अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहेगा और अंततरू होलो ऑर्बिट तक पहुंचेगा। दरअसल सूर्य का गहन, सूक्ष्म अध्ययन इसलिए जरूरी है, क्योंकि पृथ्वी पर मानवीय जीवन उसी की बदौलत है। सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं, लिहाजा सूर्य पर होने वाले बदलावों, तापमान की प्रक्रिया, ऊर्जा के निरंतर प्रवाहित होने वाले कणों से वे लगातार प्रभावित होते रहते हैं।
अब उनका वैज्ञानिक अध्ययन करना अनिवार्य होता जा रहा है, क्योंकि मानवीय प्रयास चांद और मंगल तक तो पहुंच ही चुके हैं। बृहस्पति और शुक्र पर भेजे जाने वाले मिशनों पर काम किए जा रहे हैं। बहरहाल ‘आदित्य’ सूर्य की संरचना, उत्पत्ति, किरणों और उसके वायुमंडल का अध्ययन करेगा। ऐसे पेलोड भी भेजे गए हैं, जो अध्ययनों को रिकॉर्ड कर इसरो तक भेजेंगे। सौर हवाओं, तूफानों, बदलावों और भूकंपों के भी अध्ययन किए जाएंगे। मौसम के बदलाव पर भी मिशन की निगाहें रहेंगी। सूर्य के तापमान, बाहरी किनारों की हीटिंग, ऊर्जा की पद्धतियों और पराबैंगनी किरणों के भी अध्ययन किए जाएंगे। हमारा मिशन फिलहाल एक फीसदी क्षेत्र को ही कवर कर सकेगा। वैज्ञानिक एल-1 को ‘अंतरिक्ष की पार्किंग’ कहते हैं, लिहाजा वहां पहुंच कर और मिशन को स्थापित कर अध्ययन किए जा सकते हैं। दरअसल सूर्य पर होने वाली गतिविधियों की हमें पर्याप्त वैज्ञानिक जानकारी नहीं है। आजकल जलवायु परिवर्तन पर मंथन और चर्चाएं जारी हैं। क्या सूर्य की गर्मी पृथ्वी के तापमान और पर्यावरण को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर रही है, इस निष्कर्ष पर हम तभी पहुंच सकते हैं, जब हमारे पास सूर्य के अध्ययन के साक्ष्य होंगे। बहरहाल अभी तक सूर्य के 22 मिशन भेजे जा चुके हैं, लेकिन इसरो जो कर रहा है, उससे वह इतिहास रचने जा रहा है। भारत अंतरिक्ष की शक्ति बनता जा रहा है, अब यह समूचे विश्व के सामने है। भारत की ‘अंतरिक्ष स्टेशन’ बनाने की भी योजना है। फिलहाल ‘आदित्य एल-1’ के सफर पर निगाहें हैं, क्योंकि यह सफलता भारत के लिए बेहद जरूरी है। देशवासियों को इसके सफल होने की कामना करनी चाहिए।