ऑनलाइन सामग्री नियमन पर सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन सामग्री (Online Content) के नियमन को लेकर महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं, जिसमें आधार कार्ड के माध्यम से उम्र सत्यापन (Age Verification) और दिव्यांग व्यक्तियों का अपमान करने वाली सामग्री के लिए सख्त कानून बनाने की बात शामिल है।
अश्लीलता के लिए आधार से उम्र सत्यापन
गुरुवार को, मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने सुझाव दिया कि अश्लील समझी जाने वाली ऑनलाइन सामग्री तक पहुँचने के लिए आधार का उपयोग करके उम्र का सत्यापन किया जा सकता है।
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CJI सूर्यकांत ने कहा कि चेतावनी के बावजूद, जब तक दर्शक सामग्री न देखने का फैसला करते हैं, तब तक वह शुरू हो जाती है।
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उन्होंने सुझाव दिया, “चेतावनी के बाद, शायद आधार कार्ड आदि माँगा जाए, ताकि आपकी उम्र सत्यापित हो सके और उसके बाद प्रोग्राम शुरू हो।”
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न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि एक जिम्मेदार समाज का निर्माण जरूरी है, जिससे अधिकांश समस्याएं स्वतः ही हल हो जाएंगी।

ऑनलाइन सामग्री के लिए स्वायत्त नियामक निकाय
न्यायालय ने ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि क्या अनुमति दी जा सकती है और क्या नहीं, यह तय करने के लिए एक स्वायत्त निकाय (Autonomous Body) की आवश्यकता है, जो बाहरी प्रभाव से मुक्त हो।
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CJI ने कहा कि “स्व-शैली वाले” निकाय पर्याप्त नहीं होंगे, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Free Speech) और गरिमा के अधिकार (Right to Dignity) के बीच संतुलन बनाना होगा।
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह “किसी को चुप कराने वाले” किसी भी उपाय को मंजूरी नहीं देगा, लेकिन मुक्त भाषण की आड़ में “सब कुछ और कुछ भी” करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
दिव्यांगों के अपमान पर SC/ST अधिनियम जैसा सख्त कानून
सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग व्यक्तियों का अपमान करने वाली सामग्री से निपटने के लिए कड़े कानून बनाने का आह्वान किया।
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CJI सूर्यकांत ने सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता से पूछा, “आप एक बहुत कड़े कानून के बारे में क्यों नहीं सोचते, जो SC/ST अधिनियम की तर्ज पर हो… जहाँ उनका अपमान करने पर सज़ा का प्रावधान हो।”
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SG मेहता ने सहमति व्यक्त की कि हास्य किसी की गरिमा की कीमत पर नहीं हो सकता।






















